कर भला तो हो भला कहानी 1
किसी गाँव में दो भाई रहते थे. बड़ा भाई अमीर था, उसके पास किसी भी बात की कमी नहीं थी और छोटा भाई गरीब था मेहनत मजदूरी करके पेट पालता था.
एक दिन दोनों भाईयों में बहस होने लग. बड़े भाई ने जहा–“भले का भला नहीं होता, आज की दुनिया में भले को भीख भी नहीं मिलती. इसलिए दूसरे का चाहे बुरा ही क्यों ना हो, अपने भले की की
बात पहले सोचनी चाहिए.”
यह सुनकर छोटा भाई बोला–“”नहीं भैया, कष्ट दूसरों को हो तो ऐसे में अपना भला कैसे हो सकता है.”
बड़े भुई ने बोला–“चल हम गांव में लोगों से पूछ लेते हैं. तेरी बात सही निकली तो मेरे पास जितना धन है सारा तेरा और अगर मेरी बात सही निकली तो जो तेरे पास है वह सब कुछ मेरा .”
छोटा भाई मान गया और दोनों गाँव में चले गए.
गाँव में पहुँच कर ‘एक से पूछा, दो से पूछा, तीन से पूछा तो सभी लोग यही कहने लगे कि आजकल भलाई का जमाना ही नहीं रहा.
भलाई करने वाला तो भूखा मरता है. भले इन्सान का कहीं गुजारा नहीं होता और जो बुरी राह पर चलता है वह खूब फलता फूलता है, धन-धान्य से सुखी रहता है.
अब छोटे भाई के पास जो छोटा सा खेत का टुकड़ा था, वह भी शर्त में हार गया. अब दाने-दाने को मोहताज हो गया. बीवी बच्चे भूखे मरने लगे, खाने को कोई उधार भी नहीं देता था. वह अपने बड़े भाई के पास गया, चावल उधार लेने के लिए.
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सोचा बड़ा भाई है, वह दे देगा. उसने बड़े भाई से कहा–“भैया, 10 किलो चावल दे दो, घर में अन्न का दाना तक नहीं है. बच्चे भूखे मर रहे हैं.”
बड़े भाई ने तुरंत कहा–“पैसे दे दो और जितना चाहे चावल ले जाओ.”
छोटे से कहा–“पैसे तो नहीं है!!”
इस पर बड़े भाई ने कहा–“तो फिर अपनी एक आंख दे दो.” छोटे भाई ने सोचा मजाक कर रहा है, चावल के बदले आँख तो नही लेगा.
परन्तु बड़े भाई ने चावल के बदले एक आंख निकलवा ली और 10 किलो चावल दे दिए.
यह देखकर उसके बीवी बच्चे रोने लगे कि–“तुमने यह क्या कर दिया”. थोड़े दिन तो आराम से निकल गये लेकिन फिर अनाज खत्म हो गया.
छोटा भाई हार कर फिर बड़े के पास गया. उससे भूख से बिलखते हुए बच्चे नहीं देखे जा रहे थे.
बड़े ने फिर कहा–“दूसरी आंख दे दो और चावल ले जाओ.” छोटे भाई ने दूसरी आंख भी निकलवा दी और चावल ले आया.
घर पर बीवी बच्चे देखकर रोने लगे–“तुमने यह क्या कर दिया, अब क्या होगा.” छोटे भाई ने कहा अब मैं अँधा हो गया हूँ, लोग मुझे भीख दे देंगे, मुझे सड़क के किनारे बैठा आना.
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दूसरे दिन से रोज उसकी पत्नी उसे रास्ते पर बैठा आती थी. जिससे उसका रोज का कान चलने लगा.
एक दिन उसे बैठे बैठे बहुत देर हो गयी, उसकी पत्नी उसे लेने के लिए नहीं आई, उसने बहुत समय तक उसका इंतज़ार किया.
फिर जब रात हो गई तो वह अपने घर की तरफ चल दिया. पर ना दिखने के कारण वह रास्ता भटक गया. आखिर उसने सोचा अब तो यहीं बैठ कर ही रात गुज़ार लेता हूँ और आगे चला तो रास्ता भूल जाऊंगा.
वह एक पेड के नीचे बैठ गया. कुछ समय पश्चात् पेड से आवाज आने लगी. कुछ समय बाद एक तूफ़ान सा आया, दरअसल वह भूत थे.
चरों में से एक उनका सरदार था, भूत बहुत खुराफाती थे. सब एक महीने भर लोगों को सताते थे और सरदार महीने में एक दिन इसी पेड पर सबका हिसाब किताब करता था.
आज व्ही हिसाब किताब करने वाला दिन था. सरदार ने पूछा–“हाँ! भाई तुम लोगों ने क्या क्या किया? एक एक करके बताओ.”
पहला भूत बोला–“एक गाँव में दो भाई थे, भले बुरे का तर्क हुआ और दोनों ने बाजी रखी. छोटा भाई हार गया, मैंने उसे अँधा बनवा दिया.”
सरदार बोला–“बहुत खूब! अब अँधा ही बना रहेगा, वह क्या जाने कि इस पेड की तली ओस लगाने से उसकी ऑंखें ठीक हो सकती हैं.”
दूसरा भूत बोला–“मैंने रामनगर जिले के सारे नदी, नाले, झरने, तालाब, कुए, बाबड़ी सब सुखा दिया है. हर जगह पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है.”
कई कोश तक पानी नहीं है और सब यूं ही तड़प तड़प कर मर जाएंगे.”
भूतों का सरदार बोला–“बहुत खूब! प्यासे मरे सब, उन्हें क्या पता कि वही पहाड़ के तले से सात मिट्टी की परतें हटाने से पानी फिर से आ सकता है.”
तीसरा भूत बोला–“सरदार! राजा की बेटी की शादी होने वाली थी, नगर में खुशियाँ मनाई जा रही थी, पर मैंने राजकुमारी को गूंगी बना दिया, जिससे उसकी शादी नहीं हो पाई और महल में मातम कहा गया है.”
सरदार बोला–“वाह, बहुत खूब! वह गूंगी ही रहेगी, किसी को क्या मालूम कि इस पेड की झूमती जटा को पीसकर पिला देने से वह बोलने लगेगी. खैर, चलो एक महीने बाद इसी दिन फिर यहीं मिलेंगे.”
एक तूफान सा उठा और चरों भूत वहां से चले गए, तब तक सवेरा हो गया था. अंधे भाई ने सबसे पहले वहां की ओस की बूँदें अपनी आँखों पर लगाई, उसकी आंखे लौट आई.
वह ख़ुशी से झूम उठा. उसने जल्दी से पेड की जटा ली और घर लौट आया. उसकी ऑंखें वापिस आ जाने से सभी बहुत खुश हो गये. उसने सारा किस्सा अपनी पत्नी को सुनाया और घर से निकल गया और सीधे रामनगर पहुंचा.
वहां की हालत देखी तो रोने लायक थी, सूख कर धरती फूट रही थी, कहीं एक बूँद पानी नहीं था, हाहाकार मचा हुआ था.
उसने पहाड़ के नीचे से मिट्टी की सात परतें निकाली ही थी कि फिर कुएं, तालाब और झीलों में पानी ही पानी हो गया. वहां के राजा ने उसे अपार धन दिया.
फिर वह राजा के महल में जा पहुंचा, जाते ही उसने कहा–“महाराज! मैंने सुना है कि राजुमारी गूंगी हो गयी है, मैं उसे ठीक कर सकता हूँ.
तब उसने झट से पेड की जटा को पीस कर राजकुमारी को पिला दिया और राजकुमारी बोलने लगी.”
यह देख राजा बहुत खुश हुआ और राजा ने अशर्फियों से उसकी झोली भर दी, गाडी घोडा दिया और रहने के लिए एक महल देकर परिवार कर साथ यहाँ आ कर रहने को कहा.
छोटा भाई धन से लदा घर लौटा. उसके परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. बड़े भाई ने देखा कि उसकी आंखे भी आ गयी और इतनी दौलत भी.
वह इर्षा से जलने लगा. उसने छोटे भाई से माफ़ी मांगी गडबडाया कि उसे भी राज बता दे. छोटे भाई को दया आ गई, उसने सारा राज बड़े भाई को बता दिया.
बड़ा भाई भी उसी जंगल में गया और उसी पेड तले बैठ गया. फिर व्ही तूफ़ान आया और भूतों की आवाज आने लगी. लेखा जोखा होने लगा.
भूत कहने लगे, जो किया कराया था सब पर पानी फिर गया, जरुर किसी ने अपना भेद सुन लिया. भूत जब पेड से उतरे तो बड़े भाई को बैठा पाया. बीएस फिर क्या था झट से उसका गला घोंट दिया और वह वहीं पर मर गया.
शिक्षा: भला करने वालों के साथ बुरा नहीं होता है व बुरा करने वालों के साथ बुरा होता है. मनुष्य को हमेशा संतुष्ट होना चाहिए. जो ज्यादा लालच करता है उसका हाल बड़े भाई के सामान होता है. यानि कर भला तो हो भला.
कर भला तो हो भला कहानी 2
सुन्दरपुर नाम का एक गाँव था. उस गाँव में शम्भू नाम का एक आदमी रहता था. वह बहुत सीधा साधा इन्सान था. उसके घर में उसकी पत्नी मिताली और चार बच्चे थे.
उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. उसका एवं उसके परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा था. उसके पास दो भैंसे थी.
एक दिन की बात है उसकी पत्नी मिताली ने उसे कहा क्यों ना हम एक भैंस को बेच दें, इससे हमारे पास कुछ पैसे आ जाएंगे, जिससे हमारा कुछ दिनों का गुजारा हो जाएगा.
शम्भू अपनी पत्नी की यह बात मान गया. वह अगले ही दिन एक भैंस को लेकर बेचने के लिए घर से निकल गया. कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में एक आदमी मिला जो अपना घोडा बेचने जा रहा था.
वह आदमी शम्भू से बोला…क्यों ना हम अपने जानवरों की अदला बदली कर लें. तुम मेरा घोडा लेलो औ मैं तुम्हारी भैंस ले लेता हूँ. मुझे भैंस कीई जरूरत है.
शम्भू को उस पर दया आ गयी. उसने अपनी भैंस को उसको दे दिया और उसका घोडा ले लिया. शम्भू घोडा लेकर कुछ दूर चला ही था कि उसे पता चला कि घोडा तो अँधा था.
शम्भु उसे लेकर आगे बढ़ रहा था, थोड़ी देर चलने के बाद उसे एक और आदमी मिलता है. उसके पास एक गाय थी. घोडा देख कर वो आदमी नोला कि भाई मेर गाय बहुत सीधी है और खूब दूध देती है, तुम मेरी गाय देदो और अपना घोडा देदो. मुझे घोड़े की बहुत जरूरत है.
शम्भु को उस पर दया आ गयी और उसने अपना घोडा उसे दे दिया और उसकी गाय ले ली. कुछ दूर चलने के बाद पता चला कि यह गाय तो लंगड़ी है. लेकिन वह उसे भी लेकर चल पड़ा.
थोड़ी दूर चलने के बाद उसे एक और आदमी मिला, उसके पास बकरी थी. उस आदमी ने पूछा…कहाँ जा रहे हो भाई!!
शम्भू ने बताया के मैं इस लंगड़ी गाय को बेचने जा रहा हूँ. वो आदमी बोला कि मुझे इस गाय कि बहुत जरूरत है, क्या आप मुझे यह गाय दे सकते हैं.
इसके बदले मैं आपको अपनी बकरी दे दूंगा. शम्भु ने उसे अपनी गाय दे दी और उसकी बकरी ले ली.
थोड़ी देर चलने के बाद उसे पता चला कि बकरी तो बीमार है. शम्भु बाजार पहुँच गया और बड़ी जोर से भूख लगी थी. उसने उस बकरी को पांच रूपए में बेच कर उन पैसों से वह खाना खरीद लिया.
कुछ दूर उसे एक पढ़ दिखा, उसने सोचा वहां पर शांति से बैठ कर खाना खा लेता हूँ और फिर वापिस घर जाऊंगा.
शम्भु पेड़ के नीचे गया तो वहां पर एक बूढा आदमी आ गया और बोल…बेटा मुझे बहुत भूख लगी है, क्या तुम मुझे अपना खाना दे सकते हो!!
उस बूढ़े आदमी को देख कर शम्भु को उस पर दया आ गयी और उसे अपना खाना दे दिया और वह खुद बिना कुछ खाए खली पेट घर लौट गया.
शम्भु को देख कर उसकी पत्नी मिताली बोली..बेच आए भैंस, कितने पैसे मिले?
शम्भु ने उसे सारी घटना सुनाई. सब सुनने के बाद मिताली बोली आपने बहुत अच्छा किया. आप अपने हाथ मुह धो लो मैं आपके लिए खाना लगाती हूँ.
खाना खा कर आप सो जाना, आप बहुत थक गए हैं. खाना खा कर सब आराम से सो गए.
अगले दिन जब शम्भु ने अपना दरवाजा खोला तो वो हैरान हो गया. वह अपनी पत्नी को जोर जोर से आवाज लगाने लगा. आवाज सुन कर उसकी पत्नी भी दौड़ती हुई बाहर आई.
वह भी देख कर हैरान हो गयी. उसके दरवाजे पर वह सारे जानवर थे जो कल शम्भु को रस्ते में मिले थे. सभी जानवर सही सलामत थे.
उन दोनों को यह देख कर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हुआ. अच्छाई के कारन शम्भु की जिंदगी कुछ पलों में बदल गई.
अच्छाई और सबर के कारन उसके घर में बरकत होने लगी. भगवान ने उसकी अच्छाई को सूद समेत उसे वापिस कर दिया.
तो दस्तो हमे इस कहानी से यही सीख मिलती है कि हमेशा अच्छा करना चाहिए तभी हम सभी के साथ भी अच्छा होगा. मतलब कर भला तो हो भला.
कर भला तो हो भला कहानी 3
मिश्रीलाल जी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ उत्तम नगर में रहते थे. मिश्रीलाल और उनकी पत्नी बहुत ही सरल स्वभाव के थे. उनके दो बच्चे थे, मगर दोनों ही बच्चे बड़े हो गये और उनकी शादी हो गई.
इसके बाद वो दोनों ही बच्चे अपने माता पिता से अलग रहते थे. घर में मिश्रीलाल जी और उनकी पत्नी अकेले रहते थे. उनको किसी भी चीज की कमी नहीं थी.
उनका बहुत बड़ा घर था. इसके अलावा उनका व्यापार भी बहुत बढिया था. मिश्रीलाल जी को पैसे की कोई कमी नहीं थी. वह अपनी पत्नी के साथ आराम से रहते थे.
मगर उनको एक बात का का हमेशा दुख रहता था कि उनके बच्चे उनसे अलग रहते हैं. मिश्रीलाल जी अक्सर संत महात्माओं को बुला कर अपने भर पे उनको भोजन कराया करते थे.
मिश्रीलाल जी हर महीने की पहली तारीक को लंगर लगाया करते थे और संतो को भोजन कराते थे.
एक दिन की बात है जब मिश्रीलाल अपने घर पर लंगर लगाए हुए थे. बहुत सारे लोग और बहुत सारे संत आकर भोजन करके और मिश्रीलाल को बहुत सारी दुआएं देकर वापिस जा रहे थे.
सबसे अंत में एक संत आए. अंत में आता देख मिश्रीलाल में उस संत से पूछा..”अरे महाराज जी आप कहाँ रह गए थे, बड़ी देर से लोग भोजन कर रहे थे. खैर कोई बात नहीं आप पधारें”!!
तभी उस संत ने बोला…”मैं दरअसल इसी तरफ से गुजर रहा था तो मुझे किसी ने बताया कि आज मिश्रीलाल जी के घर लंगर है, तो मैंने सोचा मैं भी कुछ खाता चलूँ”!!
मिश्रीलाल बोले…”परम सौभाग्य हमारा, आप पधारिए महाराज”!!
मिश्रीलाल जी और उनकी पत्नी ने बहुत प्यार से संत को एक तरफ बिठाया और भरपेट भोजन करवाया. भोजन करने के बाद संत जब जाने लगे तब मिश्रीलाल जी कि पत्नी से हाथ जोड़कर संत से कहा…”महात्मा जी, आपने भोजन कर लिया, भोजन का स्वाद कैसा था”!!
संत बोले….”बहुत ही अच्छा था, आपका जवाब नहीं है, आप लोग बहुत अच्छे हैं”!!
तब मिश्रीलाल की पत्नी बोली…”लेकिन संत महाराज आपने भोजन के पश्चात हमे आशीर्वाद तो दिया ही नहीं, आप तो बीएस ऐसे ही चले जा रहे हैं”!!
संत बोले…”परन्तु आपको अब किस चीज की जरूरत है, इश्वर ने आपको इतना बड़ा घर दिया है और इतना अच्छा कारोबार दिया है, आप दोनों स्वस्थ हैं, फिर भी आप किसी के आशीर्वाद की उम्मीद आखिर क्यों करती हैं!!”
मिश्रीलाल की पत्नी बोली…”लेकिन महात्मा जी हम तो भोजन इसलिए ही कराते हैं कि लोग हमे आशीर्वाद देकर जाएँ!!”
संत बोले…”नहीं! यह गलत बात है. किसी को भोजन करवाने में सेवा की भावना होनी चाहिए, हमे किसी आशीर्वाद की उम्मीद नहीं होनी चाहिए, फिर यह तो व्यवसाय हो गया. आपको ऐसे भोजन करवाने में कोई लाभ नहीं मिलेगा, जिस भोजन को करवाने के बाद आशीर्वाद की उम्मीद रखती हों!!”
मिश्रीलाल की पत्नी बोली…”परन्तु महाराज…!!”
संत…”लेकिन वेकिन कुछ नहीं. आप दोनों मेरी बात याद रखना और मेरी बात पर आप दोनों ध्यान देना. हमे जीवन में दूसरों का भला जरुर करना चाहिए. अगर इश्वर नी आपको संपन्न बना रखा है तो इसके लिए आपको इश्वर का शुक्रगुजार होना चाहिए.
आपको लोगों कि भलाई जरुर करनी चाहिए, मगर किसी से भलाई की उम्मीद आपको नहीं करनी चाहिए. जब आप उम्मीद नही करेंगे तो उम्मीद टूटने के बाद कि तकलीफ आपको कभी नहीं होगी.
हमे जीवन में किसी और से उम्मीद नहीं होनी चाहिए. हमे अपने से दूसरे का भला जरुर करना !!”
निष्कर्ष:
दोस्तो हमे उम्मीद है आपको “कर भला तो हो भला” कहानियां अच्छी लगी होंगी और इनसे सीख भी ली होगी जो आपके जीवन में बहुत काम आएगी. कृपया अपने विचार हमे नीचे कमेंट करके जरुर बताएं..धन्यवाद!!