किसी शहर में व्यक्ति रहता था उसका छोटा सा व्यापार था, उससे उसका गुजर-बसर आराम तो हो जाता था. उसके परिवार में उसकी पत्नी तथा 2 पुत्र थे.
एक दिन उसका पुत्र कहीं से पेड़ का बीज ले आया. व्यापारी ने उस बीज को अपने आंगन में बो दिया। कुछ ही दिनों में उस बीज से छोटा सा पौधा बाहर आ गया.
व्यापारी ये देखकर प्रसन्न हुआ। वो बड़े यत्न के साथ उस पौधे की सेवा करने लगा. वो और उसका पुत्र रात-दिन पौधे में खाद पानी देते रहते।
एक-दो साल बाद ही वह पौधा एक खूबसूरत पेड़ के रूप में विकसित हो गया. इस पेड़ पर बड़े ही सुंदर फल लगे, धीरे-धीरे फल पक गए. यह लाल रंग के फल बहुत ही सुंदर थे.
एक दिन पेड़ में से एक फल पक कर नीचे गिरा। व्यापारी की कुत्ते ने जब इस फल को देखा तो बड़े ही मजे से उसे खाने लगा. किन्तु जैसे ही उसने इसे खाना आरम्भ किया वैसे ही कुत्ता गिर पड़ा तथा परलोक सिधार गया.
व्यापारी ने जब मरा हुआ कुत्ता देखा तो उसने फल की ओर ध्यान नहीं दिया उसने सोचा होगी कोई बात जो यह कुत्ता मर गया.
यह भी पढ़ें: ब्रेकअप के बाद क्या करें
अगले दिन पेड़ में से एक और फल पक कर नीचे गिर गया. व्यापारी के लड़के ने जब यह फल देखा तो उसका भी मन फल को देखकर ललचा गया. उसने फल को काट कर उसका एक टुकड़ा मुंह में रख लिया।
जैसे ही उसने ऐसा किया गया वो भी वहीं ढेर हो गया.अब तो व्यापारी के घर में चीख-पुकार मच गई. लड़के के मुंह में फल का टुकड़ा रह गया था जिसे देखते ही व्यापारी समझ गया कि उसका लड़का विषैला फल खाने से मरा है.
व्यापारी ये देखकर हक्का-बक्का रह गया. उसने स्वंय फल का बीज लगाकर अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मारी थी.
ये विषैला पेड़ उसके बेटे की जान ले गया था उसे बड़ा क्रोध आया और उसने पेड़ के सारे फल तोड़ डाले। कुछ ही दिनों के बाद पेड़ में फिर फल निकल आए, इस बार पहले से भी बड़ा और सुंदर थे.
व्यापारी देखकर क्रोध से आगबबूला हो उठा. उसने अपने दूसरे पुत्र को पेड़ के पास से हटा दिया और स्वयं कुल्हाड़ी लेकर उस पेड़ की सारी डाले काट डाली।
जब जाकर उसने चैन की सांस ली. कुछ दिन तो यह सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन एक दिन व्यापारी ने देखा कि पेड़ में शाखाएं फूट पड़ी है और इस बार पेड़ और भी अधिक लहलहा कर निकला है.
यह भी पढ़ें: प्यार और आकर्षण में क्या अंतर है
कुछ दिनों बाद फलों से लद गया, यह देखकर व्यापारी सिर पकड़कर दरवाजे पर बैठ गया. वह सारा दिन दरवाजे पर बैठा रहता जिससे कोई उसके घर पर विश भरे फल न खाने।
घरवालों को उसने पहले से ही पेड़ के पास न फटकने की हिदायत दे रखी थी. इसी प्रकार कई दिन बीत गए, व्यापारी सारा दिन पेड़ के पास ही जमा रहता। एक दिन एक संत वहां से गुजरे।
उन्होंने द्वार पर आकर आवाज लगाई, व्यापारी द्वार पर आया और संत को आदर के साथ अंदर लाया। व्यापारी को उदास देख संत ने इसका कारण जानना चाहा।
व्यापारी ने रोते हुए उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया, संत ने सारी बात ध्यान से सुनी फिर बोले.. तुम बहुत भोले हो, तुमने पेड़ के फल तोड़े उसकी शाखाएं काटी किंतु पेड़ की जड़ को वैसे ही रहने दिया।
हम जब तक बुराई को जड़ से समाप्त नहीं करते वह नहीं मिटती। ऊपरी काट-छांट से उससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता।
व्यापारी की समझ में बात आ गई. उसने तुरंत ही पेड़ को जड़ से उखड़वाकर नदी में बहा दिया। अब व्यापारी के दुखों का अंत हो गया था.
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बुराई को समाप्त करने के लिए उसकी जड़ अर्थात उसके कारण को समाप्त करना चाहिए।
जिस प्रकार विषैला फल वृक्ष लगाकर उसके फल को व्यापारी के पुत्र ने खाकर अपनी जान गवाई तो व्यापारी ने जाना कि उसने अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारी है.
इसी प्रकार हम में से बहुत से लोग नित्य अपने जीवन में बुराई का बीज अपने घर बोते हैं अर्थात बाहर से दुष्कर्मों को अपने साथ लाते हैं. वह जब वृक्ष्य रूप में घर परिवार में जढ़ फैला देता है तो पछताते हैं जैसा के व्यापारी पछताया था.
अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना – कहानी 2
किसी गांव में रहती थी एक बूढ़ी औरत, उसके पास दो नौकर थे. दोनों उसके खेतों का और उसका सारा काम किया करते थे.
उस बूढ़ी औरत के पास एक पालतू मुर्गा भी था जो रोज सुबह सुबह जल्दी उठकर बाग लगाया करता था और वो पबूढ़ी औरत वह उसकी आवाज से जल्दी जल्दी सुबह सुबह उठ जाती थी.
अपने दोनों नौकरों को काम पर भी लगा देती थी. पर वह दोनों नौकर इतनी जल्दी सुबह-सुबह उठकर तंग आ गए थे. उन्हें वो मुर्गा बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि वह रोज सुबह जल्दी हल्ला कर उनको उठा देता था.
वह बूढ़ी औरत उसकी आवाज सुनकर जल्दी-जल्दी सुबह आकर दोनों नौकरों को नींद से जगा देती थी. इसलिए वो उससे बहुत परेशान हो गए.
तो एक दिन जब वह खेतों में काम कर रहे थे, दोनों नौकरों में आपस में सलाह मशविरा किया और निश्चय लिया कि वो उस मुर्गे को मार देगे।
तो बस एक दिन जब दोपहर को वह बूढ़ी औरत नींद में सो रही थी तो वह दोनों नौकरों ने उस मुर्गे को पकड़ लिया और जंगल में जाकर उस मुर्गे को मार कर फेंक दिया और फिर वह धीरे-धीरे घर की ओर खुशी में आ रहे थे.
वह दोनों नौकर ख़ुशी से घर पर लौट रहे और ये सोच रहे थे कि अब तो वो मुर्गा गया, अब कोई नहीं होगा उस बूढ़ी औरत को सुबह उठने के लिए. अगर वो सुबह उठेगी ही नहीं तो वह नौकरों को भी नहीं उठाएगी और उन्हें तंग भी नहीं करेगी और सोचते-सोचते वह घर आ गए.
पर उनकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकी। अगले दिन जब वो नौकर उठे तो सब कुछ उल्टा ही हो गया. बूढ़ी औरत ने उन्हें और जल्दी सुबह उठा दिया और फिर क्योंकि मुर्गा नहीं था तो बूढ़ी औरत खुद जिम्मेदार बनकर जल्दी-जल्दी सुबह उठकर उसने उन दोनों नौकरों को उठाकर काम करने को कहा.
पर दोनों नौकर नखरा दिखाने लगे और उनके नखरो से तंग आकर बूढ़ी औरत ने गुस्से में दोनों को अपनी नौकरी और अपने घर दोनों से निकाल दिया। अब उनकी स्थिति और भी खराब हो गई थी, ना ही उनके पास कोई नौकरी थी ना कोई काम ना कोई पेशा और ना ही जोई धंधा, वो घर से बेघर हो गए थे.
अब उनको समझ में आ गया था कि जल्दबाजी में किया गया फैसला गलत होता है. उन्होंने बिना सोचे समझे उस मुर्गे को मार दिया।
तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अनियमित या अव्यवस्थित उपाय परेशानी को और बढ़ा देते हैं. जल्दबाजी में किया गया काम हमेशा गलत होता है. इसलिए हमें सोच समझ के काम को करना चाहिए वरना हम अपने खुद के ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार देंगे।
और पढ़ें:
1 thought on “अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना”