एक गांव में दो शरारती बिल्लियां रहती थी. एक दिन वह दोनो बिल्लीयों ने मिलकर एक घर से एक रोटी चुरा लिया।
और रोटी को दो टुकड़ों में बांट लिया। परन्तु दोनों अपने-अपने हिस्से को लेकर खुश नहीं हुईं।
पहली बिल्ली बोली:- अरे! मेरे वाला रोटी का हिस्सा छोटा लग रहा है. तेरे वाला मुझसे बड़ा है.
दूसरी बिल्ली बोली:- अरे कहाँ! मेरे वाला ही छोटा है, ध्यान से देख. एक काम कर तेरे वाला तू मुझे दे दे.
पहली बिल्ली:- क्यों दूँ? तू अपने हिस्से से मुझे थोड़ा दे-दे, तो तेरा और मेरा एक समान हो जाएगा।
दूसरी बिल्ली:- वाह भई वाह! मैं दूँ, मेरे हिस्से से? तू तो बहुत चलाक है.
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तभी वहीँ पेड़ पर बैठा हुआ एक बंदर उन दोनों बिल्लिओं को झगड़ते हुए देख रहा था. बंदर नीचे उतर के उनके पास जा बैठा।
बंदर बोला:- अरे अरे झगड़ क्यों रहे हो तुम दोनों। मेरे पास आ जाओ और ये रोटी मुझे देदो, मैं तुम्हारी सुलह करवा देता हूँ.
दोनों बिल्लियां बोली:- हाँ-हाँ! यही ठीक है. हम दोनों से तो कुछ हो नहीं रहा है, तुम ही कुछ कर दो और हम दोनों को रोटी एक सामान करके बाँट दो.
तभी बंदर ने दोनों टुकड़ों को लिया और एक तराजू में डाल दिया।
बंदर बोला:- देखो तराजू इस तरफ झुक गया मतलब रोटी इस तरफ ज्यादा है. ये बोल के बंदर ने थोड़ी सी रोटी खा ली. लेकिन तराजू दूसरी तरफ झुक गया.
बंदर बोला:- अरे-अरे! अब तो ये वाला ज्यादा हो गया.
अब बंदर ने दूसरे रोटी के टुकड़े से तोड़ के थोड़ा खा लिया।
इस तरह तराजू कभी एक तरफ और कभी दूसरी तरफ करता रहा और बंदर धीरे-धीरे रोटी खाता चला गया.
कुछ देर बाद जब बहुत कम रोटी बची तब दोनों बिल्लियों ने बोला; रहने दो भाई ऐसे तो पूरी रोटी हो जाएगी। जितनी बची है उतनी हमे देदो, हम दोनों वही खा लेंगे।
तभी बंदर बोला:- क्या बात कर रहे हो भाई, इतनी देर तक मैंने कोशिश की कि तुम दोनों को एक सामान बाँट के दूँ। अब इतना बचा है ये तो मेरे पेट में ही जाएगा।
तुम लोग क्या मुझे मेरी मेहनत के लिए बक्शीश नहीं दोगे, तुम दोनों तो बहुत अच्छे हो.
यह बोलकर वो बंदर रोटी का बचा हुआ हिस्सा भी खा गया और दोनों बिल्लियों के पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा और उन्हें भूखा ही रहना पड़ा.
शिक्षा: तो इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों से सहायता मांगने से पहले अपनी समस्यायों का समाधान खुद करना चाहिए।
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