दोस्तो, आज हम आपको Osho biography विस्तार में बताएंगे. रजनीश, जिन्हें भगवान रजनीश, ओशो रजनीश, आचार्य रजनीश, भगवान श्री रजनीश और बाद में ओशो के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय धर्मगुरु, रहस्यवादी और रजनीश आंदोलन के संस्थापक थे।
दोस्तो, इनका नाम जितना अलग और विचित्र था उतना ही रहस्यमयी था इनका व्यक्तित्व. महान भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने अपनी पुस्तक Millennium में लिखा था कि वह पूर्व से आएगा, उसके लोग लाल कपडा पहनेगे, उसे कैद किया जाएगा, उसकी संस्था को उजाड़ जिया जाएगा.
उसके नाम का अर्थ चन्द्रमा होगा.
Osho biography in Hindi
आज हम “Osho biography in Hindi” में बात करेंगे ओशो के जीवन के बारे में.
ओशो का जन्म
ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के कुछवाड़ा गांव में हुआ। ओशो के पिता का नाम बाबूलाल और माताजी का नाम सरस्वती जैन था।
बचपन में उनका नाम चंद्र मोहन जैन रखा गया था लेकिन प्यार से उन्हें राजा बाबू बुलाया करते थे. जन्म से लेकर 7 बर्ष की आयु तक वो अपने नाना नानी पन्ना लाल जैन तथा श्री मती गेंदा बाई के पास रहे.
ओशो जब सात वर्ष के थे तो उनके नाना जी की मृत्यु हो गई और तब से वो अपने माता पिता के साथ रहने लगे.
ओशो स्वंय कहते हैं कि उनकी नानी ने उन्हें सम्पुरण सवतंत्रता दी तथा उन्हें रूढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा. यही उनके विकास में प्रमुख योगदान रहा.
ओशो बचपन से ही बहुत तीक्ष्ण बुद्धि के और विद्रोही किस्म के इंसान थे. बचपन में कोई भी खेल खेलते समय, खेल को पूरी चेतना से खेलते थे और नदी में नहाना उनको सबसे अच्छा लगता था.
वे एक बार नदी में गये तो कोई नहीं बता सकता था कि कब लौट के वापस आएंगे. इसके साथ-साथ उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था. वह एक दिन में दो-तीन किताबें पढ़ देते थे.
उनका अपने खुद के प्रवचनों में कहना यह है कि एक समय तो यह था जब वह घर में किताबे लाते थे, तो बाद में एक समय ऐसा आया जब उनका घर लाइब्रेरी लगने लगा।
जन्म से ही ओशो बहुत ही तार्किक स्वभाव के थे. उनके प्रश्नों के उत्तर देना बड़े बड़ों के लिए मुश्किल हो जाता. 5 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने नाना के गुरु से ऐसे प्रश्न किए कि वो भी निरुत्तर हो गये.
किशोर अवस्था तक आते आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे. उहें इश्वर और अस्थिकता में जरा भी विश्वास नहीं था.
ओशो का जब पैदा हुए तो उनके ज्योतिषी ने उनके पिता से कहा कि यदि ये बालक सात वर्ष सी अधिक जी जाता है, तब मैं इसकी कुंडली बनाऊंगा. क्योंकि ओशो का सात वर्ष से अधिक जीवित रहने का योग नहीं था.
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ज्योतिषी ने यह भी कहा था कि प्रतेक सात वर्षों में इन्हें मृत्यु का सामना करना पड़ेगा. ओशो जब 14 वर्ष के हुए तो वो एक मंदिर मे जाकर अपनी मृत्यु का इंतजार करने लगे.
लेकिन उनका बाल भी बांका नहीं हुआ. दरअसल वो किसी भी चीज़ को बड़ी ही गहराई से जानना चाहते थे.
वो ये भी जानना चाहते थे कि आखिर मौत क्या है. इसीलिए वो कभी भी रत में शमशान घाट चले जाया करते थे और वहां जानने की कोशिश करते थे कि आखिर मौत क्या है.
पढ़ाई
ओशो विद्रोही होने के साथ-साथ वह बहुत ही तार्किक थे और पंडित पूरोहित को शुरू से ही टक्कर देते आए और अपने professor के साथ ही उनकी झड़प चलती रहती थी.
जिसके कारण कई बार उन्हें कॉलेज से निकाला गया और कोई भी कॉलेज उन्हें लेने से इंकार कर देता था. फिर उन्होंने कॉलेज में एडमिशन तो ली लेकिन घर में बैठकर अपनी पढ़ाई पूरी की।
युवावस्था में उनकी एक सहेली हुआ करती थी जिसका नाम शशि था जो ओशो से उम्र में बड़ी थी और शशि की मृत्यु भी ओशो से पहले ही होगी थी।
ओशो का कहना यह है कि 21 मार्च 1953 को एक बार ध्यान करते करते उन्हें समाधि की उपलब्धि हुई और अपने सारे द्वार उनके लिए खोल दिए और अभी उनके पास कोई प्रश्न नहीं बचा था जिसका की उत्तर उनके पास नहीं था.
फिर भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1957 में सागर यूनिवर्सिटी से M.A. की डिग्री प्राप्त की. फिर उन्होंने जबलपुर यूनिवर्सिटी में lecturer के पद पर जॉइनिंग कर ली.
आत्म साक्षात्कार
1953 में जब ओशो 21 वर्ष के हुए तो उहें मौलश्री वृक्ष्य के नीचे ऐसी अनुभूति हुई जिससे उनका पूरा जीवन बदल गया, उनको आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति हो चुकी थी. ओशी ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सूफी, जैन जैसे कई धर्मों पर प्रवचन दिए.
वो अक्सर यीशु, मीरा, नानक, कबीर, गौतम बुद्ध, रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे कई महापुरषों के रहस्य के बारे में प्रवचन देते थे. इसी के साथ जून 1964 में रणकपुर शिविर में पहली बार ओशो के प्रवचनों को रिकॉर्ड किया गया.
इस पर एक किताब भी छापी गयी जिसका नाम है Path of Self-Realization, जो काफी प्रसिद्ध हुई.
आध्यात्मिक जीवन
पढाई के साथ ही वे पूरे भारत में भ्रमण करते रहें और अपने संदेश को फैलाते रहे।
धीरे-धीरे उनका प्रवचन सुनने भारी मात्रा में लोग आने लगे. वह अपने प्रवचनों में प्रकृति के हर पहलू के बारे में बात करते थे, इसीलिए कई लोग तो उनकी निंदा भी करते थे.
दोस्तो,ओशो की शिक्षाएं सबसे अलग थी. वह आम आध्यात्मिक गुरुओं के जैसे नही थे, इसलिए अगर आपसे यह कहा जाए कि ओशो से सावधान रहें तो यह कोई हैरानी की बात नहीं.
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ओशो के जितने समर्थक हैं उतने विरोधी भी हैं. कुछ लोग उन्हें समाज को बर्बाद करने वाला मानते हैं जबकि कुछ लोग जग को सवारने वाला मानते हैं.
वो हर बात नए ढंग से कहते, रूढ़िवादी रीती-नीतियों पर चोट करते, गाँधी-नेहरु जैसे लोकप्रिय नेताओं पर कटाक्ष करते, सेक्स पर खुलकर बात करने की वकालत करते.
मनो यह व्यक्ति कोई नई क्रांति लेकर आ गया हो, जिससे संभालना न सरकारों के बस में था और ना ही लोगों के बस में. इसलिए विश्व के अधिकतर देशों ने उनपर प्रतिबंध लगा दिया और ओशो को आश्रय देने से मना कर दिया.
ओशो का जीवन समान्य नहीं था, उनकी बातें जिन्होंने ने भी सुनी उन्हें लगा मनो वो बदल गये हों. उनकी आवाज़ और बातों का ही कमाल था कि हर उम्र के लोग उन तक पहुँचने लगे और हजारों की संख्या में उनसे लोग नवसन्यास की दीक्षा लेने लगे.
ओशो एक बहुत की कुशल वक्ता थे.
इसके साथ ही साथ उन्होंने अपने प्रवचनों में 100 से अधिक meditation techniques के बारे में भी बताया। Meditation Techniques अभी उनकी किताबों में उपलब्ध है।
भले ही उन्होंने अपने प्रवचन हिंदी और इंग्लिश भाषा में दिए लेकिन अब उनके प्रवचन 50 से भी अधिक भाषाओं में ट्रांसलेट हो चुके हैं. अपने प्रचार को बढ़ाने के लिए 1974 में वह पुणे रहने के लिए चले गए।
यहां पर उन्होंने अपना आश्रम बनाया जहां पर ज्यादातर लोग दूसरे देशों से आते थे और उनके प्रवचन सुनते थे।
1969 तक ओशो भारत में काफी प्रसिद्ध हो चुके थे, तब उनके समर्थकों ने उनके नाम पर एक फाउंडेशन बनाया जिसका मुखालय मुंबई में था. बाद में इसे पुणे के कोरेगांव स्थानांतरित कर दिया गया और वो इंसान OSHO International Meditation Resort के नाम से जाना जाता है.
“भगवान श्री रजनीश” यह नाम ओशो को 1970 में दिया गया था. अब उनका नाम अमेरिका तक प्रसिद्ध पहुँच चूका था. यूरोप और अमेरिका के लोग उन्हें मनोवैज्ञानिक भी कहते थे.
क्योंकि वो कहते थे कि ओशो मनुष्य का आंतरिक विकास करते थे.
अमेरिका जाना
पुणे में ओशो सात साल तक रहे और हर सुबह 90 मिनट का प्रवचन दिया करते थे. फिर 1981 में वे अमेरिका चले गए, यहां पर उनके शिष्यों ने Oregon नाम की जगह पर 100 SM से भी ज्यादा जमीन खरीद रखी थी.
फिर धीरे-धीरे करके उनके शिष्यों ने यहां पर एक शहर बसा लिया, जिसका नाम उन्होंने अपने प्यारे गुरु रजनीश जी के नाम पर रजनीश पुरम रख लिया।
इस शहर के अपने हवाई अड्डे, बस अड्डे और अपने sports complex थे. यह बात अमेरिकी सरकार को बहुत सताने लगी.
1985 में Oregon Commune को बर्बाद कर दिया गया और उनके आश्रम को एक अवैध काम करने वाला आश्रम बताया. 28 अक्टूबर, 1985 को पुलिस अधिकारिओं ने ओशो को और उनके दूसरे साथिओं को गिरफ्तार कर लिया.
लेकिन बाद में छोड़ दिया गया था. इसके बाद ओशो पर 4 लाख डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया और उन्हें अमेरिका से निर्वासित भी किया गया. इसके बाद से ओशो को और भी ज्यादा प्रसिद्धि मिलने लगी.
इसके बाद वो वर्ल्ड टूर पर निकल गए थे. सबसे पहले वे ग्रीस गए, यहाँ पर 30 दिनों तक उनका वीसा वैद्य था लेकिन 18 दिनों के बाद ग्रीक पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और अपने देश से निकाल दिया.
उसके बाद यूरोप के अलग अलग 17 देशों ने भी उनके अपने देश में आने की रोक लगा दी. कहते हैं सभी देशों ने उन पर रोक इसलिए लगाई थी कि ओशो एक ऐसा व्यक्तित्व थे जहाँ भी वह जाते थे लोग उनके शब्दों में डूब जाया करते थे.
उनकी बात में सच्चाई और तरक होते थे. अमेरिका को डर था कि अगर ओशो अमेरिका में थोड़े दिन और रुके तो यहाँ पर एक नया धर्म जन्म ले लेगा “ओशो धर्म”
अमेरिका में ओशो के भक्त Christianity को छोड़ कर ओशो धर्म अपनाने लगे थे.
फिर 1987 में ओशो पुणे आश्रम वापस आ गए.
यहां पर आकर उन्होंने फिर से अपने प्रवचन देने शुरू कर दिए और फरवरी 1989 में उनके सारे भक्तों ने मिलकर उनको एक प्यारा नाम दिया ‘ओशो रजनीश’।
ओशो की मृत्यु कैसे हुई
जनवरी 1990 तक वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर होने लगे थे. 19 जनवरी को उनके हृदय का धडकना भी कम हो गया था और जब डॉक्टर ने उनका इलाज करने के लिए उनकी इजाज़त मांगी तो उन्होंने मना कर दिया.
उन्होंने डॉक्टर से कहा प्रकृति ने मेरा समय निर्धारित कर रखा है और फिर 19 जनवरी, 1990, शाम 5 बजे उन्हीने अपना शरीर छोड़ दिया. 58 वर्ष की आयु में वो दुनिया छोड़ गये.
मरने से पहले भी उनका यही संदेश था कि उनकी मृत्यु को सेलिब्रेट किया जाए। पुणे में वह आश्रम अभी भी है जिसे ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट के नाम से जाना जाता है।
दोस्तो, ओशो एक चमत्कार की तरह लोगों के जीवन में आये और एक नया जीवन देकर चले गए. ओशो ने हर पहलु पर बात की, हर महापुरुष पर राये दी.
ओशो अपने आप में एक समुद्र थे, जो उनको पढ़ता है समझता है, वह उनमें डूब जाता है.
काफी लोग कहते हैं कि उनकी मृत्यु कुदरती मृत्यु नहीं थी बल्कि उन्हें किसी बड़ी साजिश के तहत मारा गया था. कहा जाता है कि जब अमेरिका में उन्हें गिरफ्तार किया गया था, तब उन्हें एक धीमा ज़हर दिया गया था.
कुछ लोग तो कहते हैं कि उनके कुछ करिबिओं ने जो उनके साथ रहते थे उनकी मृत्यु में उनका हाथ था, लेकिन सच क्या है यह हम नहीं जानते. यह राज़ आज भी एक राज़ बना हुआ है.
तो दोस्तो, हमे उमीद है आपने आज “Osho biography in hindi” पोस्ट के माध्यम से ओशो के बारे में बहुत कुछ जान गये होंगे. यदि आपको हमारी यह आर्टिकल “Osho biography in hindi” पसंद आया है तो कमेंट करके जरुर बताएं, धन्यवाद !!
ओशो पुस्तकें:
- उड़ियो पंख पसार
- अध्यात्म उपनिषद
- अमृत वर्षा
- होनी होय सो होय
- अपने माहिं टटोल
- असंभव क्रांति
- बिन बाती बिन तेल
- ध्यान-सूत्र
- ध्यान विज्ञान
- ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति
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