कहानी 1
गरीब की उड़ान
एक छोटे से गांव में एक सकू बाई नाम की औरत रहती थी। उसका एक बेटा भी था राजेश, जो कि पढ़ाई में बहुत होशियार था। सकू बाई के पति के गुज़र जाने के बाद सारी जिम्मेदारियां सकू बाई के कंधो पर आ गई थी।
वह किसी के घर बर्तन मांजती तो किसी के घर खाना बनाती थी। उसका बेटा भी उसके साथ ही जाया करता था। वहा बैठे बैठे वह अखबार पढ़ा करता था।
एक दिन जब वह अखबार पढ़ रहा था तो एक औरत आकर बोली अरे राकेश! अखबार पढ़ने तू कोनसा बड़ा अफसर बन जायेगा, जाकर अपनी मां का हाथ बटा।
राकेश बोला, मालकिन मैं बड़ा अफसर बनना चाहता हूं। हम हिताबे नही खरीद सकते इसलिए यह अखबार पढ़कर जानकारी प्राप्त कर रहा हूं। मालकिन जोर जोर से हंसने लग गई। यह देख कर सकू बाई अपने बेटे को लेकर घर चली गई।
उसके बाद उसने शादियों में रोटी बनाने का काम शुरू कर दिया। वह सुबह 3 बजे उठकर 15–20 किलो रोटियां बनाती थी और राकेश भी सुबह उठकर अपनी मां का हाथ बटाता था और फिर पढ़ने बैठ जाता था।
एक दिन वहा उनके मकान मालिक आए और बोले क्या सकू बाई तुम तो 3 बजे ही सुबह उठ जाती हो और बिजली जला लेती हो। या तो बिजली का बिल भरो या यह कमरा छोड़ दो। यह बोलकर मालिक गुस्से में चला जाता है।
राकेश लालटेन लगाकर पढ़ाई करने लगा और सकू बाई भी उसी में गुजारा करने लगी। ऐसे ही कही सालो तक राकेश पढ़ता रहा और हमेशा अव्वल नंबर लाने लगा।
राकेश की लगन देख कर उसके गुरु जी ने उसे दिल्ली जाने के सलाह दी और खर्चा भी खुद उठाने की जिम्मेदारी ली।
वह दिल्ली जाकर पढ़ाई करने लगा। एक दिन जब वह परीक्षा देने जा रहा होता है तब उसे एक गाड़ी टक्कर मार जाती है। उसके सर पे और बाए हाथ पर चोट लग जाती है। वह दाए हाथ से लिखने का निर्णय लेता है।
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वह अपने पूरे साल को बरबाद होने से बचाकर परीक्षा देने के लिए निकलता है। वहा जाकर उसने परीक्षा दी और फिर बाद ने हस्पताल जाकर अपना इलाज कराया। राजेश ने वहा भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और इंटरव्यू दिया।
इंटरव्यू देने के बाद वह अपने गांव वापिस लोट जाता है। थोड़े दिन बाद उसकी मां अखबार खरीदकर लाती है और राकेश को अपना result देखने को कहती है।
राकेश खुश होकर बोलता है मां! मैं पास हो गया। मैं अफसर बन गया। उन दोनो की आंखों में आसूं आने लग गए।
तो दोस्तो, इस कहानी से आपको पता चला होगा कि हमे हमेशा अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मेहनत करते रहना चाहिए।
दुनिया चाहे हम पर हसी उड़ाए लेकिन हमे कभी हिम्मत नही हरनी होती है और हमेशा लक्ष्य पर ध्यान देकर, जीत हासिल करनी होती है।
Hindi motivational stories 2
भिखारण बनी डॉक्टर
एक बार की बात है, काशीपुर नाम के गांव में जगन नाम का भिखारी अपनी बेटी गौरी के साथ भीख मांगता था। जगन को साफ दिखाई नहीं देता था इसलिए उसे कोई काम नही मिलता था।
वह अपनी बेटी को साथ लेकर भीख मांगने जाता था। गौरी को भीख मांगना पसंद नही था, वह पढ़ना लिखना चाहती थी। जब वह सेठानी के घर भीख मांगना जाते तब उसके बेटे राजू को पढ़ते देख कर उसे अच्छा नही लगता।
यह देख सेठानी ताने देते हुए हरिया देख ब दरवाज़े पर वही भिखारी होगा उसे भीख देकर भेज दो। वैसे ही बीमारी फैली हुई है, कही मेरे बेटे को उनकी गंदी बीमारी न लग जाए।
यह सुनकर वह दोनो वहा से चले गए। गौरी अपने पिता से पूछती है कि पीता जी सारे लोग हमसे दूर क्यों भागते है, क्या हम गंदे लोग है। पिता जी बोले अरे नही बेटा बुराई तो हमारी गरीबी और इनकी सोच में है।
गौरी बोली पिता जी एक दिन मैं डॉक्टर बनकर आपकी आंखों का इलाज करूंगी और इस गांव में एक अस्पताल भी खोलूंगी। उसके पिता जी बोले कि बेटा हमारे लिए दो वक्त की रोटी खाना भी मुश्किल है, अस्पताल कैसे खोलेंगे।
तभी उनके पास एक औरत आती है और गौरी को कहती है अगर तुम हमारे टॉयलेट साफ कर दोगी तो मैं तुम्हे कुछ पैसे भीख में दूंगी। गौरी ने उनका टॉयलेट साफ किया और उसे बहुत बुरा लगने लगा। तब वह सोचने लग गई कि अब मैं डॉक्टर बनकर रहूंगी।
गौरी अपने पिता को ले जाकर मंदिर के बाहर रहीम चाचा के पास बैठा जाति है और खिलोने बेच कर कुछ पैसे कमाने लगी। और फिर वह गांव की शिक्षिका से किताब लेकर सरकारी स्कूल में पढ़ने गई।
अब गौरी रोज स्कूल से आकर खिलोने बेचती और अपने पिता का ध्यान भी रखती। गौरी रात रात भर जाग कर पढ़ाई करती और हमेशा अव्वल नंबर लाती। गौरी की कामयाबी देख कर गांव के सभी लोग हैरान रह गए।
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धीरे धीरे गौरी बड़ी होती गई और कॉलेज में दाखिला देने के लिए परीक्षा देने लगी। उसकी शिक्षिका उसका पूरा साथ देती थी। इम्तिहान में टॉप करके उसके पिता जी और शिक्षिका बहुत खुश हुए।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए गौरी को बाहर जाना पड़ता है परंतु उसका बिल्कुल भी मन नही होता है अपने पिता को छोड़कर जाने का। तब शिक्षिका उसके पिता की सारी जिम्मेवारी लेने के लिए तैयार हो जाती है।
बाहर जाकर गौरी बिलकुल लगन के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखती है। थोड़े समय तक उसकी कोई खबर नहीं आती है और गांव फिर से महामारी फैलने लगती है। रेनू के पिता और राजू इस बीमारी से हस्पताल में पड़े रहे।
वहा कोई भी डॉक्टर नही आ रहा था। इतने में एक नर्स आकर बोलती है कि आप दुखी मत होइए, आज हमारे हस्पताल में एक बहुत बड़ी डॉक्टर इलाज करने आ रही है।
तभी वहा गौरी आती है और सभी उसे देख कर हैरान रह जाते है। तभी वह अपने पिता के पैर छूती है और सबका इलाज शुरू कर देती है।
सबके ठीक होने के बाद गौरी अपने पिता की आंखों का भी ऑपरेशन कर देती है और रोशनी वापिस आ जाती है।
गौरी को देख कर सभी को शर्मिंदा महसूस होता है। सभी उसकी कामयाबी को देख कर बहुत खुश होते है और उसको माला पहनाकर उसका सम्मान करते है।
तो दोस्तो, इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि यदि गौरी के जैसे लगन, मेहनत, दृढ़ निश्चय से काम को करे तो हमे कामयाबी जरूर मिलती है।
Hindi motivational stories 3
चार घड़े
एक समय की बात है किसी गाँव में एक कुम्हार रहता था. वह बड़े सुंदर और अच्छे मिट्टी के बर्तन बनाता था. सर्दियों का मोसम था, एक दिन बर्तन बनाते समय उस ने चार घड़े बनाये. घड़े बहुत ही सुंदर और बड़े थे.
कुम्हार के सारे बर्तनों की बिक्री तो अच्छे से हो रही थी लेकिन सुंदरऔर बड़े होने के बावजूद उन चार घड़ों को कोई नहीं खरीद रहा था.
इस बात से वो चारों घड़े बड़े दुखी और परेशान रहते थे. जब काफी दिन दिन हो गये लेकिन घड़े नहीं बिके तब वो घड़े खुद को बेकार और बिना किसी काम के समझने लगे थे.
एक दिन वह घड़े अकेले रह गये थे. अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए चारों घड़े आपस में बातें करने लगे. पहला घडा बोला,”मैं तो एक बहुत बड़ी और सुंदर मूर्ति बनना चाहता था, ताकि किसी अमीर के घर की शोभा बढ़ाता.
लोग मुझे देखते मेरी तारीफ करते और मैं गर्व महसूस करता, लेकिन मैं तो एक घडा ही बन कर रह गया”.
तभी दूसरा घडा बोला, “किस्मत तो मेरी भी खराब है, मैं तो एक दिया बनना चाहता था जो लोगों के घरों में रोज़ जगता और चारों ओर रोज़ रौशनी बिखेरता”.
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तभी तीसरा घडा भी बोलने से ना रहा और वह भी अपनी परेशानी बताने लगा. वह बोला, “किस्मत तो मेरी भी खराब है, मुझे पैसों से बहुत प्यार है इसलिए मैं एक गुल्लक बनना चाहता था.
अगर मैं गुल्लक होता तो लोग मुझे ख़ुशी से ले जाते और मुझे हमेशा पैसों से भरा रखते”.
अपनी अपनी परेशानीओं औत दिक्कतों के बारे में बोलकर अब वे चौथे घड़े की तरफ देखने लगे. चौथा घडा तीनो घड़ों को देख कर मुस्करा रहा था. तीनो घड़ों को चौथे घड़े का यह व्यव्हार अच्छा नहीं.
वे उस चौथे घड़े से बोले, “क्या बात है भाई, क्या आपको घडा बनने का कोई दुख नहीं है, क्या आप खुश हैं? जब कि तीन महीने हो गये हमारा कोई खरीदार नहीं मिल रहा”.
इस बात पर चौथा घडा मुस्कुराया और बोला, “आप तीनो क्या समझते हो, क्या मैं दुखी नहीं हूँ! मैं तो एक खिलौना बनना चाहता था ताकि जब भी बच्चे मुझसे खेलते तो बहुत खुश हो जाते और उनकी प्यारी से हसी और ख़ुशी को देखकर मैं भी बहुत खुश होता.
लेकिन कोई बात नहीं. हम एक उद्देश्य में असफल हो गये तो क्या, दुनिया में अवसरों की कोई कमी भी नहीं है. एक गया तो आगे और भी अवसर मिलेंगे, बीएस धैर्य रखो और सही समय का इंतजार करो”.
यह बात सुन कर बाकी तीन घड़ों में भी ख़ुशी छा गई. एक महीना और बीता और गर्मी के मोसम की शुरुआत हो चुकी थी. लोगों ने अब ठंडा पानी पीने के लिए घड़ों के खरीद शुरू कर दी थी .
चारों घड़े बड़े और सुंदर तो थे ही, तो लोगों ने जैसे ही उन्हें देखा तुरंत उसे ऊँचे दामों में खरीद लिया.
आज वो घड़े बहुत से लोगों की प्यास बुझाते हैं और बदले में ख़ुशी उअर दुवाएं पाते हैं.
तो दोस्तो. दुनिया में बहुत ऐसे लोग हैं जो वह नहीं बन पाते जो वो बनना चाहते थे. ऐसा होने पर लोग खुद को असफल महसूस करते हैं और हमेशा अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं.
कुछ लोग जीवन में अपने लक्ष्य को पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं परन्तु जब उनको उसमें सफलता हसिल नहीं होती या किसी कारन से वह लक्ष्य पूरा नहीं कर पाते तो वह निराश और परेशान हो जाते हैं और खुद को हारा हुआ मान लेते हैं.
लेकिन, ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या हुआ अगर हम अपने पहले उदेश्य में असफल हो गए. क्या हुआ जब हमने एक मौका गवा दिया, हमें निरंतर प्रयास करते रहना है.
हमें नए नए रास्ते खोजने में लगे रहना है और सही समय आने पर हमारी की हुई सारी मेहनत और लगन हमें बहुत ऊँचे मुकाम पर पहुंचा देती है.
“सफर में मुश्किलें आए, तो हिम्मत और बढती है!
कोई अगर रास्ता रोके तो जुर्रत और बढ़ती है!
अगर बिकने पे अ जाओ, तो घट जाते हैं दाम अक्सर
ना बिकने का इरादा हो, तो कीमत और बढ़ती है!!”
Motivational story in hindi for success 4
भाग्य भी बदल जाता है
एक जंगल के दोनों ओर अलग अलग राजाओं का राज्य था. उसी जंगल में एक महात्मा रहते थे. दोनों रजा उन्हें अपना गुरु मानते थे.
उसी जंगल में बीच एक नदी बहती थी और उसी नदी को लेकर दोनों राजाओं के बिच तनाव और झगड़ा चलता रहता था.
एक दिन बात बिगड़ते-बिगड़ते यहाँ तक आ पहुंची कि कोई दोनों रजा सुलह करने के लिए राज़ी नहीं था. इसलिए युद्ध तैय था. दोनों राजा ने महात्मा से आशिर्वाद लेना था.
जब पहला राजा महात्मा के पास पहुंचा तो महात्मा ने उससे कहा कि तुम्हारे भाग्य में जीत नहीं लगती, आगे इश्वर की मर्जी. यह सुन कर पहले तो राजा थोडा चुप हुआ लेकिन फिर उसने सोचा कि अगर हारना ही है तो पूरी ताकत से लड़ेंगे, मगर हार नहीं मानेगे.
अगर हार भी गए तो हार को दूसरे लोगों के लिए उदाहर्ण बना देंगे.
दूसरा रजा भी आशिर्वाद लेने महात्मा के पास गया. महात्मा ने कहा भाग्य तो तेरे पक्ष में लगता है, राजा तो ये सुन कर ख़ुशी से भर गया. जब वापिस लौटा तो निश्चिन्त हुआ कि जैसे उसने युद्ध जीत ही लिया हो.
धीरे धीरे रात और दिन बीते और फिर युद्ध का दिन आ गया. दोनों राजाओं की सेना युद्ध के मैदान में जमा हो गई और लड़ना शुरू कर दिया.
एक तरफ की सेना यह सोच कर लड़ रही थी कि चाहे किस्मत में हार लिखी हो परन्तु हम हार नहीं मानेगे. वहीँ दूसरी तरफ की सेना ये सोचकर लड़ रही थी जीतना तो हमें ही है तो फिर डरना कैसा.
लड़ते लड़ते राजा के घोड़े के पैर की नाल निकल गयी और घोडा लड़खड़ाने लगा लेकिन राजा ने ध्यान नहीं दिया और यह सोचा कि जब जीत किस्मत में है ही तो किस बात की चिंता.
परन्तु कुछ ही देर बाद घोडा लडखडा कर गिर गया और राजा दुश्मन के हाथों पड़ गया और उसकी हार हो गई.
युद्ध के बाद महात्मा भी वहां पर आ गये, दोनों ही राजाओं को ये जानने की उत्सुकता होने लगी कि आखिर किस्मत का लिखा बदल कैसे गया!!
राजाओं ने महात्मा से पूछा और महात्मा मुस्कुरा कर बोले की किस्मत का लिखा नहीं बदला. किस्मत अपनी जगह बिलुकल ठीक है.
उन्होंने जीतने वाले राजा की तरफ इशारा करते हुए कहा, “अब आपको ही देख लो राजन, अपनी हार के बारे में सुनकर आपने दिन-रात एक कर दिया,सब कुछ भूल कर ज़बरदस्त तैयारी की, खुद हर बात का ख्याल रखा, जबकि पहले आपकी योगना सेनापति के दम पर युद्ध लड़ने की थी.”
फिर महात्मा ने हारने वाले राजा को कहा, “आपने तो युद्ध से पहले ही जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया था. आपने तो अपने घोड़े की नाल तक का ख्याल रहीं रखा, तो फिर इतनी बड़ी सेना को कैसे संभाल पाते.
हुआ वही जो किस्मत में लिखा था, भाग्य नहीं बदला. पर जिनके भाग्य में जो लिखा था उन्होंने खुद ही अपना भाग्य बदल लिया, फिर बेचारा भाग्य भी क्या करता.”
निष्कर्ष:
दोस्तो, भाग्य लोहे की तरह वही खिंच कर जाता है जहाँ कर्म का चुंबक लगा हो. हम भाग्य के आधीन नहीं हैं, हम तो स्वंय भाग्य के निर्माता हैं.
हम जो भी कर्म करते हैं असल में वही हमारा भाग्य है. कुछ परिस्थितियों पर हमारा वश नहीं चलता. जैसे किसी अच्छे और अमीर घर में पैदा होना यह हमारे बीएस में नहीं. लेकिन कर्म के बिना फूल से धुल होने और कर्म से साथ धुल से फूल होने के उधाहरणों से दुनिया भरी पड़ी है.
हमें उम्मीद है आपको “hindi motivational stories” “प्रेरणादायक हिंदी कहानियां” अच्छी लगी होंगी और आपने कुछ अच्छी सीख भी ली होगी. हमें अपने विचार कमेंट करके जरुर बताईयेगा, धन्यवाद !!
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bhut achi story bna te he